Wednesday, August 10, 2011

वार्षा ............. 
झूम के मौसम बादल का,
फिर मेरे आँगन आया है,
मन ने फिर किसी कोने से, धीमे से,
मुसुराकर, हौले से,
गीत कोई नया गुनगुनाया है..........
बिछड़ कर खुद से,
जो खुदी में, ढूंढ़ रही थी,
इस वर्षा ने,
उन सपनो को, 
फिर जिंदा किया......

         घिर के बादरा,
         मेरे आंगन में, 
         फिर ढेरो किस्से लाया है,
         गीत कोई नया फिर गुनगुनाया है............

3 comments:

  1. http://neerajjabalpuriya.blogspot.com/

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  2. पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या

    जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या

    मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है

    हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या

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