वार्षा .............
झूम के मौसम बादल का,बिछड़ कर खुद से,
फिर मेरे आँगन आया है,
मन ने फिर किसी कोने से, धीमे से,
मुसुराकर, हौले से,
गीत कोई नया गुनगुनाया है..........
जो खुदी में, ढूंढ़ रही थी,
इस वर्षा ने,
उन सपनो को,
फिर जिंदा किया......
घिर के बादरा,
मेरे आंगन में,
फिर ढेरो किस्से लाया है,
गीत कोई नया फिर गुनगुनाया है............
Monsoons...........i m loving it
ReplyDeletehttp://neerajjabalpuriya.blogspot.com/
ReplyDeleteपनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
ReplyDeleteजो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या