मरुधर लगता कितना सुखा सा
फिर भी लेकर जीवन के हर रूप
हर रोज़ नया रंग तुझको मुझको
हर कदम पर दिखाता रहा.
हाल क्या बयां कर्रे मरुधर
कठोर बन, सिखाने कुछ ख़ास तुझको मुझको
की जीना यू तो आसन नहीं
पर अम्रुधर में जो जी गया
उस ने जीवन का अमृत है पाया
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